धान


Short Description:
धान भारत की एक महत्तवपूर्ण फसल है जो कि जोताई योग्य क्षेत्र के लगभग एक चौथाई हिस्से में उगाई जाती है और भारत की लगभग आधी आबादी इसे मुख्य भोजन के रूप में प्रयोग करती है। यह उत्तर प्रदेश की मुख्य फसल है और उत्तर प्रदेश के लगभग 5.4 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती की जाती है।

Climate:
वर्षा-100-200 सेमी बुवाई का तापमान-20-30°C कटाई का तापमान-16-27°C

Soil Type:
इस फसल को मिट्टी की अलग अलग किस्मों, जिनमें पानी सोखने की क्षमता कम होती है और जिनकी पी एच 5.0 से 7.5 के बीच में होती है, में भी उगाया जा सकता है। धान की पैदावार के लिए रेतली से लेकर गारी मिट्टी तक, और गारी से चिकनी मिट्टी जिसमें पानी को सोखने की क्षमता कम होती है इस फसल के लिए अच्छी मानी जाती है।
Soil Treatment:
इसके उपयोग के लिए 8 -10 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद लेते हैं तथा इसमें 2 किलो ट्राईकोडर्मा विरिडी और 2 किलो ब्यूवेरिया बेसियाना को मिला देते हैं एवं मिश्रण में नमी बनाये रखते हैं. यह क्रिया में सीधी धूप नहीं लगनी चाहिए. अतः इसे छाव या पेड़ के नीचे करते हैं. नियमित हल्का पानी देकर नमी बनाये रखना होता है

Seed Treatment:
बिजाई से पहले 10 लीटर पानी में 20 ग्राम कार्बेनडाज़िम $ 1 ग्राम स्ट्रैप्टोसाईक्लिन घोल लें और इस घोल में बीजो को 8-10 घंटे तक भिगोयें। उसके बाद बीजों को छांव में सुखाएं और फिर बिजाई के लिए प्रयोग करें। फसल को जड़ गलन रोग से बचाने के लिए नीचे दिए गए फंगसनाशी का प्रयोग किया जा सकता है। पहले रासायनिक फंगीनाशी का प्रयोग करें फिर बीजों का टराईकोडरमा के साथ उपचार करें।
Seed Rate:
एक एकड़ खेत में 6-8 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।

Time of Sowing:
यू पी के सिंचित और निम्न बारानी क्षेत्रों में मध्य जून से शुरूआती जुलाई तक का समय उपयुक्त होता है।
Method of Sowing:
सिंचित और कम बारानी क्षेत्रों में रोपाई ढंग प्रयोग किया जाता है। रोपाई के लिए 25-30 दिनों के पौधों का प्रयोग करें। जल जमाव वाले क्षेत्रों में 30-35 दिनों के पौधे रोपाई के लिए प्रयोग करें। ऊंचे क्षेत्रों में, शुष्क और गीली मिट्टी में रोपाई ढंग का प्रयोग करें।

Fertilizers :
सिंचित और कम बारानी वाले क्षेत्रों के लिए लगभग 41-50 किलो नाइट्रोजन (यूरिया 90-110 किलो), 30 किलो फासफोरस (एस एस पी 190 किलो) और 27 किलो पोटाश (म्यूरेट ऑफ पोटाश 45 किलो) प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के समय डालें। बाकी बची नाइट्रोजन को दो भागों में बांटकर, नाइट्रोजन का 1/4 हिस्सा शाखाएं निकलने के समय और 1/4 हिस्सा बालियां निकलने के समय डालें। जल जमाव वाले क्षेत्रों में नाइट्रोजन 30-41 किलो (यूरिया 65-90 किलो) प्रति एकड़ में शुरूआती खुराक के तौर पर डालें। कम बारानी क्षेत्रों के लिए नाइट्रोजन 23-32 किलो (यूरिया 52-70 किलो) और फासफोरस 16 किलो (एस एस पी 100 किलो) प्रति एकड़ में प्रयोग करें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फासफोरस की पूरी मात्रा रोपाई से पहले और बाकी बची नाइट्रोजन बालियां निकलने के समय डालें। ऊंचे क्षेत्रों के लिए नाइट्रोजन 23 किलो (यूरिया 52 किलो), फासफोरस 12 किलो (एस एस पी 75 किलो) और पोटाश 12 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 20 किलो) प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन की आधी और फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बिजाई के तीन सप्ताह बाद डालें। बाकी बची नाइट्रोजन को दो भागों में बांटे। पहले भाग को बिजाई के 6 सप्ताह बाद और दूसरे भाग को बालियां निकलने के समय डालें।
Water Requirements :
पनीरी लगाने के बाद खेत में दो सप्ताह तक अच्छी तरह पानी खड़ा रहने देना चाहिए। जब सारा पानी सूख जाए तो उसके दो दिन बाद फिर से पानी को लगाना चाहिए। खड़े पानी की गहराई 10 सै.मी. से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। खेत में से बूटी और नदीनों को निकालने से पहले खेत में से सारा पानी निकाल देना चाहिए ओर इस प्रक्रिया के पूरे होने के बाद खेत की फिर से सिंचाई करनी चाहिए। पकने से 15 दिन पहले सिंचाई करनी बंद करनी चाहिए ताकि फसल को आसानी से काटा जा सके। ऊंची भूमि पर सिंचाई पूरी तरह से बारिश पर निर्भर करती है। बारिश की तीव्रता और नियमितता के आधार पर और पानी की उपलब्धता के आधार पर गंभीर अवस्थाओं में सिंचाई करें।
Harvest Time:
धान की कटाई उसकी किस्म पर निर्भर होती है | दानों पर जब 20 प्रतिशत नमी हो तब कटाई कर लेनी चाहिए | दाने पूरी तरह पक जायें और फसल का रंग सुनहरी हो जाये तो खड़ी फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। ज्यादातर फसल की कटाई हाथों से द्राती से या कंबाइन से की जाती है। काटी गई फसल के बंडल बनाके उनको छांटा जाता है। दानों को बालियों से अलग कर लिया जाता है। दानों को बालियों से अलग करने के बाद उसकी छंटाई की जाती है।

Weeds:
चौड़े पत्ते वाले नदीनों की रोकथाम के लिए मेटसलफुरॉन 20 डब्लयु पी 30 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर नदीनों के अंकुरण के बाद रोपाई के 20-25 दिन बाद डालें। स्प्रे से पहले खेत में खड़े पानी का निकास कर दें और स्प्रे के एक दिन बाद सिंचाई करें।

Weeds Symptoms:

Weeds Management:
रोपाई के 2 से 3 दिन बाद नदीनों के अंकुरण से पहले बूटाक्लोर 50 ई सी 1200 मि.ली. या थायोबेनकार्ब 50 ई सी 1200 मि.ली. या पैंडीमैथालीन 30 ई सी या प्रैटीलाक्लोर 50 ई सी 600 मि.ली. प्रति एकड़ में डालें। इनमें से किसी एक नदीननाशक को 60 किलो रेत में मिलाकर 4-5 सैं.मी. गहरे खड़े पानी में बुरकाव करें। चौड़े पत्ते वाले नदीनों की रोकथाम के लिए मेटसलफुरॉन 20 डब्लयु पी 30 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर नदीनों के अंकुरण के बाद रोपाई के 20-25 दिन बाद डालें। स्प्रे से पहले खेत में खड़े पानी का निकास कर दें और स्प्रे के एक दिन बाद सिंचाई करें। नदीनों के अंकुरण से पहले बूटाक्लोर 1 लीटर को बिजाई के 6 से 7 दिनों के बाद प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
Diseases:
1- भुरड़ रोग : 2- करनाल बंट : 3- भूरे रंग के धब्बे : 4- कंडवा रोग : 5- खैरा रोग :

Diseases Symptoms:
1- भुरड़ रोग : झुलस रोग के कारण पत्तों के ऊपर तिरछे धब्बे जो कि अंदर से सलेटी रंग और बाहर से भूरे रंग के दिखाई देते हैं। इससे फसल की बालियां गल जाती हैं और उसके दाने गिरने शुरू हो जाते हैं। जिन क्षेत्रों में नाइट्रोजन का बहुत ज्यादा प्रयोग किया जाता है। 2- करनाल बंट : करनाल बंट की शुरूआत पहले बालियों के कुछ दानों पर होती है और इससे ग्रसित दाने बाद में काले रंग का चूरा बन जाते हैं। हालत ज्यादा खराब होने की सूरत में पूरे का पूरा सिट्टा प्रभावित होता है। 3- भूरे रंग के धब्बे : पत्तों के भूरेपन के लक्षण की पहचान पत्तों के ऊपर अंदर से गहरे भूरे रंग और बाहरे से हल्के भूरे रंग के अंडाकार या लंबाकार धब्बों से होती है। यह धब्बे दानों के ऊपर भी पड़ जाते हैं। 4- कंडवा रोग : इस रोग के कारण फफूंद की तरह हर दाने के ऊपर हरे, पिली, काले रंग की परत जम जाती है। उच्च नमी, ज्यादा वर्षा और बादलवाई हालातों में यह बीमारी के फैलने का खतरा बढ़ जाता है। 5- खैरा रोग : खेत में पौध रोपण के 2 हफ्ते के बाद ही पुरानी पत्तियों के आधार भाग में हल्के पीले रंग के धब्बे बनते है जो बाद में कत्थई रंग के हो जाते हैं, जिससे पौधा बौना रह जाता है तथा कल्ले कम निकलते है एवं जड़े भी कम बनती है तथा भूरी रंग की हो जाती है।

Diseases Management:
1- भुरड़ रोग : रोग के लक्षण दिखाई देने पर ट्रायसायक्लाजोल 1 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति ली. या मेन्कोजेब 3 3 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिये। 2- करनाल बंट : जब फसल पर 10 प्रतिशत बालिया निकल जायें तब टिल्ट 25 ई सी 200 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 10 दिनों के अंतराल पर दोबारा स्प्रे करें। 3- भूरे रंग के धब्बे : जब बालियां बननी शुरू हो जाए उस समय 200 मि.ली. टैबूकोनाज़ोल या 200 मि.ली. प्रोपीकोनाज़ोल को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 4- कंडवा रोग : जब बालियां बननी शुरू हो जाए उस समय 200 मि.ली. टैबूकोनाज़ोल या 200 मि.ली. प्रोपीकोनाज़ोल को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 5- खैरा रोग : खैरा रोग के नियंत्रण के लिये 4-5 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति एकड़ उपयोग करें।
Insects / Pests:
1- जड़ की सुंडी : 2- पत्ता लपेट सुंडी : 3- तना छेदक : 4- पौधे का टिड्डा :

Insects / Pests Symptoms:
1- जड़ की सुंडी : यह सफेद रंग की बिना टांगों वाली होती है। यह मुख्य तौर पर पौधे की जड़ पर ही हमला करती है। इसके हमले के बाद पौधे पीले होने शुरू होने लगते है और उनका विकास रूक जाता है। इस कारण धान के पत्तों के ऊपर दानों के निशान उभर आते हैं। 2- पत्ता लपेट सुंडी : तना छेदक कीट कल्ले निकलने की अवस्था में पौध पर आक्रमण करता है एवंकेन्द्रीय भाग को हानि पहंचाता है और परिणाम स्वरूप पौधा सूख जाता है। 3- तना छेदक : इस कीटाणु का लार्वा धान के पौधे की बन रही बालियों में प्रवेश करके उसको खा जाता है, जिससे बालियां धीरे धीरे सूख कर खाली हो जाती है जो बाद में सफेद रंग में तबदील हो जाती हैं। 4- पौधे का टिड्डा : इन कीटों का फसल के ऊपर हमला खड़े पानी वाले या वर्षा पर निर्भर क्षेत्रों में ज्यादा होता है।

Insects / Pests Management:
1- जड़ की सुंडी : इसका हमला दिखने पर कार्बोफियूरॉन (3 जी) 4 किलो को प्रति एकड़ में डालें। 2- पत्ता लपेट सुंडी : क्लोरपाइरीफॉस को400-500 मिलीलीटर को 150 लीटर पानी में मिला के प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। 3- तना छेदक : क्लोरपाइरीफॉस को400-500 मिलीलीटर को 150 लीटर पानी में मिला के प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। 4- पौधे का टिड्डा : यदि इसका हमला दिखे तो इमीडाक्लोप्रिड 100 मि.ली. या क्लोरपाइरीफॉस 1 लीटर को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए।
Nutrients:
*नाइट्रोजन =नाइट्रोजन धान में ,बढ़वार ,ज्यादा फुटाव व फैलाव में मदद करता है। पौधों में हरापन बढ़ता है | *फास्फोरस = फास्फोरस धान में ज्यादा फुटाव व फैलाव में मदद करता है। पौधों में जड़ों के विकास में सहायता करता है | *पोटाश = पोटाश धान में ज्यादा फुटाव व फैलाव में मदद करता है। दाने मोटे चमकदार वजनी हो जाते हैं। दानों पर विशेष चमक आने से मंडी में उनकी कीमत बढ़ जाती है। *जिंक = रोगों से लड़ने में सहायता करता है एवं हरापन बनाने में मदद करता है | *मैग्नीशियम = यह क्लोरोफिल बनाता है एवं तने को मोटा होने में सहायता करता है | *सल्फर = सल्फर दानों में चमक लाता है

Nutrients Deficiency Symptoms:
*नाइट्रोजन =प्रारंभिक लक्षण पुराने पत्तों में दिखते हैं | क्लोरोफिल विघटन के कारण पत्तियों में पीलापन, धीमी वृधि, कम पत्तियों का निर्माण , पौधों में बौनापन होने लगता है .और नाइट्रोजन की कमी से कम प्रोटीन का निर्माण एवं फसल का शीघ्र पक्कन. कम कल्ले (टिलर) एवं पैदावार में कमी आने लगती है | *फास्फोरस = फास्फोरस की कमी के कारण पत्तियों पर हलके सफ़ेद रंग के छोटे धब्बे दिखाई देते है | *पोटाश =पोटाश की कमी से पौधे की पत्ती पीली, नुकीली तथा किनारे से झुलस जाती है। *जिंक = जस्ते/ जिंक की कमी के कारण फसल में कल्ले फूटने में कमी, पौधों में असमान वृद्धि, बौने पौधों की पत्तियों में भूरे रंग के धब्बे पडऩा एवं नयी पत्तियों की निचली सतह की मिडरिव में हरिमाहीनता पत्तियों का अपेक्षाकृत सकरा होना, आदि लक्षण दिखाई देते हैं।पीले रंग के छोटे छोटे धब्बे पत्तियों के मध्य में बनते हैं। बाद में धब्बे बड़े होकर पत्तियों को सुखा देते | धान की पत्तियां जंग लगी सी हो जाती हैं। जिंक की कमी से होने वाले रोग को खैरा रोग भी कहते है *मैग्नीशियम =पत्तियों का मुड़ना एवं पीलापन पत्तियों के अगले भाग से शुरू होकर बीच की ओर बढ़ता है. -हालांकि, वाहिकाएं (विन्स) हरी बनी रहती हैं -अग्रिम अवस्था में ऊपरी पत्तियों में झुलसाव रूपी धब्बों का बनना | *सल्फर =सल्फर की कमी पौधे की ऊपरी नई पत्तियों में दिखते हैं , पत्तियों का रंग हल्का हरा हो जाता है, पत्तियों के किनारे ऊपर की ओर मुड़ जाते हैं | लेकिन पत्तियों की वाहिकाएं हरी बनी रहती है| * आयरन = इसकी कमी से पौधों में पीलिया रोग हो जाता है। पत्तियों का रंग पीला व सफेद हो जाता है। धान की फसल में कमी के लक्षण दूर से पहचाने जा सकते हैं। पौधों का आकार छोटा रह जाता है

Nutrients Deficiency Management:
*नाइट्रोजन = कमी के लक्षण दिखने पर यूरिया उपयोग करें | एन पी के 19:19:19 का स्प्रे कर सकते है | *फास्फोरस = डी ए पी की जगह सिंगल सुपर फास्फेट 75 किग्रा० प्रति एकड़ उपयोग करें | *पोटाश = रोपाई के समय म्यूरेट आफ पोटास 20 किग्रा० प्रति एकड़ उर्वरक प्रयोग करें | *जिंक = जिंक की कमी को पूरा करने के लिए 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट हैप्टाहाइड्रेट या 16 किलोग्राम जिंक सल्फेट मोनोहाइड्रेट प्रति एकड़ के हिसाब से उपयोग करना चाहिए। *मैग्नीशियम =0.5 फीसदी मैग्नीशियम सल्फेट का घोल बनाकर छिड़काव करें। * आयरन = 0.1 फीसदी फेरस सल्फेट के घोल के 15 दिन के अंताल पर दो से तीन छिड़काव करें।