यह कीट पहले पत्तियों के मुलायम हिस्सों को खाती हैं। इसके बाद अपनी लार से धागा बना कर पत्तियों को किनारे से मोड़ने लगती हैं। पत्तियों को मोड़ने के बाद यह पत्तियों को अंदर से खुरच कर खाने लगती हैं। इससे पौधों के विकास और फसलों की पैदावार पर प्रतिकूल असर होता है।
यह कीट धान की पत्तियों पर समूह में अंडे देती हैं। करीब 6 से 8 दिनों में अंडों में से सूंडियां निकलने लगती हैं। इस कीट की सूंडियां शुरुआत में पीले रंग की होती हैं। बाद में इनका रंग हरा हो जाता है और पंखो पर कत्थई रंग की आड़ी-टेढ़ी रेखाएं दिखाई देती हैं।
पौध रोपण के 15-20 दिनों बाद फिप्रोनिल 0.3 प्रतिशत दानेदार का प्रति एकड़ 8-10 किलोग्राम प्रयोग करें। प्रति एकड़ फसल में 200 से 250 लीटर पानी में 150-180 मिलीलीटर लम्ब्डासाइलोंथ्रिन 2.5 प्रतिशत ई.सी मिला कर छिड़काव करें। इसके अलावा प्रति एकड़ फसल में 200 लीटर पानी में 250 मिलीलीटर डेल्टामेथ्रिन 2.8 प्रतिशत एस.एल मिला कर छिड़काव करने से भी इस कीट से राहत मिलती है।
Panicle initiation to booting