इसका वयस्क कीट लम्बी टांगों से युक्त मक्खी समान छोटे मच्छर-सा होता है। मादा चमकीला लाल उदर रखती है और नर काले रंग का होता है। अण्डे पर्ण फलक या पर्णच्छद पर दिए जाते है। इस कीट का आक्रमण नर्सरी में प्रारंभ होता है और फसल की जोदी निकलने की अवस्था तक जारी रहता है। मैगट तने मे प्रवेश करते हैं और केन्द्रीय प्ररोह के शीर्षस्थ बिन्दु तक पहुँचते हैं जहॉ यह खाकर विकसित होते हैं। आक्रमण की गई दोजी की केन्द्रीय पत्ती ''रजत (सिल्वर) प्ररोह'' नामक चमकती हुई नालिकाकर संरचना में परिवर्तित हो जाती है। प्रभावित दोर्जी में पुष्पगुच्छ उत्पन्न नहीं होते हैं। फसल की प्रारंभिक अवस्थाओं में कीट ग्रहसन होन पर प्रचुर दोर्जियां उत्पन्न होती है और पौधो की वृध्दि अवस्ध्द हो जाती है। कीटग्रस्त दोर्जी के आधार पर प्यूपीकरण होता है। ई0 टी0 एल 5 प्रतिशत रजत प्ररोह है।
फसल में गॉल मिज कीट नर्सरी से प्रारम्भ होकर कल्ले निकलने की अवस्था तक हानि पहुंचता है। इस कीट से ग्रसित तना चांदी के रंग की पोंगली में परिवर्तित हो जाता है और कीट ग्रसित पौधे में बालियां नहीं आती हैं। कल्ले फूटने की अवस्था में सर्वाधिक हानि होति है।
इसके नियंत्रण के लिए धान की कटाई के उपरांत पौधे के ठूंठे को नष्ट करें। नत्रजन युक्त उर्वरकों का उचित व संतुलित मात्रा में उपयोग करें। प्रकाश प्रपंच का प्रयोग करें। लैम्ब्डा-सायलोथ्रिन 02.50% ईसी @ 200 मिली प्रति 200 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें। पहला छिड़काव मिशाइल डिमेटोन 25 ई. सी. (एक ली./हे) से कली बनने के समय करना चाहिए जबकि दूसरा छिड़काव 15 दिनों बाद डायमेथोयट (एक लीटर/ए\हे.) से करना उत्तम होता है।