Name | Image | Stages | Periods | Symptoms |
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गेहू | ![]() |
Vegetative stages | जनवरी से फरवरी तक यह रोग पाया जाता है | फसल में लगने वाला भुरा रतुआ या भूरी गेरुई एक फफूंदजनित रोग है। इसके प्रकोप से पत्तियों पर भूरे रंग चूर्ण सा बिखरा हुआ दिखाई देता है। रतुआ या गेरूई की फफूँदी के फफोले पत्तियों पर पड़ जाते है जो बाद में बिखर कर अन्य पत्तियों को प्रभावित करते है। |
जौ | ![]() |
Vegetative stages | जनवरी से फरवरी तक यह रोग पाया जाता है | फसल में लगने वाला भुरा रतुआ या भूरी गेरुई एक फफूंदजनित रोग है। इसके प्रकोप से पत्तियों पर भूरे रंग चूर्ण सा बिखरा हुआ दिखाई देता है। रतुआ या गेरूई की फफूँदी के फफोले पत्तियों पर पड़ जाते है जो बाद में बिखर कर अन्य पत्तियों को प्रभावित करते है। |
लोबिया | ![]() |
Vegetative stages | जुलाई से अगस्त तक यह रोग पाया जाता है इस रोग का संक्रमण ज्यादा नमी के मौसम में अधिक होता है। | निचली पत्ती की सतहों पर जंग के रंग के धब्बे बन जाते हैं गंभीर रूप से संक्रमित पत्तियां पीली हो जाती हैं इस रोग से पौधे के तने और फलियां भी संक्रमित हो सकते हैं। |
उड़द | ![]() |
Vegetative stages | अगस्त से सितम्तबर तक यह रोग पाया जाता है इस रोग का संक्रमण ज्यादा नमी के मौसम में अधिक होता है। | रोग गोलाकार लाल भूरे रंग के धब्बे के रूप में दिखाई देता है जो पत्तियों के नीचे अधिक सामान्य रूप से दिखाई देते हैं। जब पत्तियां गंभीर रूप से संक्रमित होती हैं, तो दोनों सतह पूरी तरह से जंग के धब्बे से ढकी होती हैं। |
रतुआ रोग कई तरह के होते हैं। गेहूं की फसल को इस रोग के कारण सर्वाधिक नुकसान होता है। यह रोग भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में पाया जाता है। गेंहू में पीला रतुआ रोग, भूरा रतुआ रोग और काला रतुआ रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के तरीके यहां से देखें। इस पोस्ट में बताई गई दवाओं का प्रयोग कर के आप गेहूं की फसल में रतुआ रोग पर आसानी से निजात पा सकते हैं।
फसल में लगने वाला भुरा रतुआ या भूरी गेरुई एक फफूंदजनित रोग है। इसके प्रकोप से पत्तियों पर भूरे रंग चूर्ण सा बिखरा हुआ दिखाई देता है। रतुआ या गेरूई की फफूँदी के फफोले पत्तियों पर पड़ जाते है जो बाद में बिखर कर अन्य पत्तियों को प्रभावित करते है।
रोग के लक्षण दिखाई देते ही प्रोपीकोनाजोल 25 ई.सी. (टिल्ट) या टेब्यूकोनाजोल 25 ई.सी. का 0.1 प्रतिशत घोल बनाकर छिड़काव करें. रोग के प्रकोप तथा फैलाव को देखते हुए दूसरा छिड़काव 10-15 दिन के अंतर पर करें |