जौ


Short Description:
राजस्थान और बिहार के साथ उत्तर प्रदेश जौं का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड जौं का मुख्य उत्पादक क्षेत्र है। जौं की सूखे के प्रति अच्छी प्रतिरोधक क्षमता होती है। जौं का मनुष्यों के साथ-साथ पशुओं द्वारा भी उपभोग किया जाता है। जौं का प्रयोग शराब बनाने और आयुर्वेदिक दवाइयों आदि में भी किया जाता है।

Climate:
वर्षा-800-1100 मिमी बुवाई का तापमान-12 - 16°C कटाई का तापमान-30°-32°C

Soil Type:
यह फसल हल्की ज़मीनों जैसे कि रेतली और कल्लर वाली ज़मीनों में भी कामयाबी से उगाई जा सकती है। इसलिए उपजाऊ ज़मीनों और भारी से दरमियानी मिट्टी इसकी अच्छी पैदावार के लिए सहायक होती हैं। तेजाबी मिट्टी में इसकी पैदावार नहीं की जा सकती।
Soil Treatment:
इसके उपयोग के लिए 8 -10 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद लेते हैं तथा इसमें 2 किलो ट्राईकोडर्मा विरिडी और 2 किलो ब्यूवेरिया बेसियाना को मिला देते हैं एवं मिश्रण में नमी बनाये रखते हैं. यह क्रिया में सीधी धूप नहीं लगनी चाहिए. अतः इसे छाव या पेड़ के नीचे करते हैं. नियमित हल्का पानी देकर नमी बनाये रखना होता है |

Seed Treatment:
अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए बाविस्टिन 2 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
Seed Rate:
बीज की मात्रा अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग होती है। बिहार के साथ उत्तर प्रदेश के लिए 40-50 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।

Time of Sowing:
अछि उपज के लिए, 15 अक्तूबर से 15 नवंबर तक बिजाई पूरी कर लें। सिंचित क्षेत्रों के लिए, 15 से 25 नवंबर तक बिजाई पूरी कर लें। बारानी क्षेत्रों में, बिजाई के लिए 15 अक्तूबर से 10 नवंबर का समय उपयुक्त होता है।
Method of Sowing:
इसकी बिजाई छींटे द्वारा और मशीन द्वारा की जाती है।

Fertilizers :
मिट्टी की जांच के आधार पर खादें डालें। मिट्टी की जांच के अनुसार ही हम मिट्टी में आवश्यक खादों की मात्रा दे सकते हैं। सिंचित क्षेत्रों के लिए, नाइट्रोजन 60 किलो (यूरिया 130 किलो), फासफोरस 24 किलो (एस एस पी 150 किलो), पोटाश 12 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 20 किलो) प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बिजाई के समय डालें। बाकी नाइट्रोजन को पहली सिंचाई के समय डालें। बारानी क्षेत्रों के लिए, नाइट्रोजन 24 किलो (यूरिया 52 किलो), फासफोरस 12 किलो (एस एस पी 75 किलो), पोटाश 8 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 15 किलो) प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोज, फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बिजाई के समय डालें। सिंचित क्षेत्रों में पिछेती बिजाई के लिए, नाइट्रोजन 50 किलो (यूरिया 110 किलो), फासफोरस 12 किलो (एस एस पी 75 किलो), पोटाश 16 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 27 किलो) प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा और फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बिजाई के समय डालें। बाकी बची नाइट्रोजन की दो तिहाई मात्रा बिजाई के 35-40 दिनों के बाद डालें। यह पाया गया है कि जिंक सल्फेट 10 किलो प्रति एकड़ में डालने से उपज में वृद्धि होती है। जिंक की कमी को पूरा करने के लिए जिंक सल्फेट 0.5 प्रतिशत की फोलियर स्प्रे करें। 15 दिनों के अंतराल पर दो से तीन स्प्रे करें। अच्छी शाखाएं और उपज के लिए 19:19:19 घुलनशील खादें 5 ग्राम + स्टिकर 0.5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 30 दिनों के बाद स्प्रे करें।
Water Requirements :
इस फसल में पहली सिंचाई बोनी के 20 से 25 दिन पर करना चाहिये । पानी निकासी का उचित प्रबंध करना चाहिये, जिन स्थानों पर पानी रूकता है, वहां के पौधे पीले पड़ने लगते हैं । सिंचाई की संख्या व मात्रा भूमि की किस्म व तापमान पर निर्भर करती है । फिर भी अच्छे उत्पादन के लिये 3 से 4 सिंचाई देना आवश्यक है ।
Harvest Time:
फसल किस्म के अनुसार मार्च के आखिर और अप्रैल में पक जाती है। फसल को ज्यादा पकने से बचाने के लिए समय के अनुसार कटाई करें। फसल में 25-30 प्रतिशत नमी होने पर फसल की कटाई करें। कटाई के लिए दांतों वाली दरांती का प्रयाग करें। कटाई के बाद बीजों को सूखे स्थान पर स्टोर करें।

Weeds:

Weeds Symptoms:

Weeds Management:
अच्छी फसल और अच्छी पैदावार के लिए शुरू में ही नदीनों की रोकथाम बहुत जरूरी है। चौड़े और तंग पत्तों वाले नदीन इस फसल के गंभीर कीट हैं। चौड़े पत्तों वाले नदीनों की रोकथाम के लिए नदीनों के अंकुरण के बाद 2,4-D @ 250 ग्राम को 100 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 30-35 दिनों के बाद डालें। बारीक पत्तों जैसे नदीनों की रोकथाम के लिए आइसोप्रोटिउरॉन 75 प्रतिशत डब्लयु पी 500 ग्राम को प्रति 100 लीटर पानी या पैंडीमैथालीन 30 प्रतिशत ई सी 1.4 लीटर को प्रति 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
Diseases:
1- सफेद धब्बे : 2- धारीदार जंग : 3- झंडा रोग :

Diseases Symptoms:
1- सफेद धब्बे : इस बीमारी से पत्ते, तने और फूलों वाले भाग के ऊपर सफेद आटे जैसे धब्बे पड़ जाते हैं यह धब्बे बाद में सलेटी और भूरे रंग के हो जाते हैं और इससे पत्ते के अन्य भाग सूख जाते हैं इस बीमारी का हमला ठंडे तापमान और भारी नमी में बहुत होता है। 2- धारीदार जंग : इस बीमारी को फैलने और हमला करने के लिए 8-13 डिगरी सैल्सियस तापमान चाहिए होता है और विकास के लिए 12-15 डिगरी सैल्सियस तापमान चाहिए और बहुत पानी चाहिए। इस बीमारी से 5 से 30 प्रतिशत तक पैदावार कम हो जाती है। पत्तों पर पीले धब्बे लंबी धारियों के रूप में दिखाई देते हैं जिन पर पीली हल्दीनुमा नज़र आती है। 3- झंडा रोग : यह बीज से पैदा होने वाली बीमारी है। यह बीमारी हवा द्वारा फैलती है यह बीमारी ठंडे और नमी वाले मौसम में फूल आने पर पौधे के ऊपर हमला करती है।

Diseases Management:
1- सफेद धब्बे : बीमारी आने पर 2 ग्राम घुलनशील सल्फर प्रति लीटर पानी में या 200 ग्राम कार्बेनडाज़िम प्रति एकड़ में छिड़काव करें। गंभीर नुकसान होने पर 1 मि.ली. प्रॉपीकोनाज़ोल प्रति लीटर पानी मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रे करें। 2- धारीदार जंग : लक्षण दिखाई देने पर 35-40 किलो सल्फर प्रति एकड़ में छिड़काव करें या 2 ग्राम मैनकोज़ेब या प्रॉपीकोनाज़ोल 25 ई सी 1 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 3- झंडा रोग : बीज को फंगीनाशी जैसे कि कार्बोक्सिन 75 डब्लयु पी 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। ज्यादा बीमारी पड़ने पर कार्बेनडाज़िम 2.5 ग्राम, टैबुकोनाज़ोल 1.25 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि नमी की मात्रा कम हो तो बीजों को टराईकोडरमा विराईड 4 ग्राम और कार्बोक्सिन (विटावैक्स 75 डब्लयु पी) 1.25 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
Insects / Pests:
1- सैनिक सुंडी : 2- बदबूदार कीड़ा : 3- पतली सुंडी : 4- चेपा : 5- बालियों का कीड़ा :

Insects / Pests Symptoms:
1- सैनिक सुंडी : ये कीट पत्तों को किनारे पर से खाते हैं और कभी कभी पूरा पत्ता ही खा जाते हैं। पत्तों पर मौजूद इसके अंडे के गुच्छे रूई या फंगस की तरह लगते हैं। 2- बदबूदार कीड़ा : यह कीट हरे या भूरे रंग का और इस पर पीले और लाल रंग के निशान बने होते हैं। इस कीट के मुंह में रोगजनक जीव होते हैं जो कि पौधे को गंभीर नुकसान पहुंचाते है और ये अंडे गुच्छों में देते हैं। 3- पतली सुंडी : यह सुंडियां हल्के भूरे रंग की होती हैं। यह अपना जीवन 1-4 साल तक पूरा करती हैं। यह सुंडियां तने को मोड़ देती हैं और तने का शिखर सफेद रंग का हो जाता है। 4- चेपा : 5- बालियों का कीड़ा : यह कीड़ा बालियां निकलने पर हमला करके जाल बना लेता है। इसके अंडे चकमीले सफेद रंग के होते हैं और गुच्छों में पाए जाते हैं। अंडों के ऊपर संतरी रंग के बाल होते हैं। इसकी सुंडियां भूरे रंग की होती हैं जिनके ऊपर पीले रंग की धारियां होती हैं और थोड़े बाल होते हैं।

Insects / Pests Management:
1- सैनिक सुंडी : इसके लक्षण जब भी दिखें तो मैलाथियॉन 5 प्रतिशत, 9.6 किलो या क्विनलफॉस 1.5 प्रतिशत 9.6 किलो का प्रति एकड़ में छिड़काव करें। कटाई के बाद खेत में से नदीनों और जड़ों को निकाल दें। 2- बदबूदार कीड़ा : : इसकी रोकथाम के लिए फसल के आस-पास को नदीन रहित रखें। इसकी रोकथाम के लिए परमैथरिन और बाईफैथरिन दो कीटनाशक हैं जो इस कीड़े को मारने की क्षमता रखते हैं। 3- पतली सुंडी : नुकसान होने पर इसका कोई हल मौजूद नहीं है पर फसल बीजने से पहले थाइमैथोक्सम 325 मि.ली. से प्रति 100 किलो बीजों का उपचार करें। 4- चेपा : इसकी रोकथाम के लिए थाईमैथोक्सम या इमीडाक्लोप्रिड 30 मि.ली. को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रे करें। 5- बालियों का कीड़ा : बालग कीड़ों की रोकथाम के लिए दिन के समय रोशनी यंत्र लगाएं। फूल से बालियां बनने पर 5 फेरोमोन कार्ड प्रति एकड़ पर लगाएं। गंभीर हालत में 1 ग्राम मैलाथियॉन या कार्बरिल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
Nutrients:

Nutrients Deficiency Symptoms:

Nutrients Deficiency Management: