उड़द


Short Description:
दलहनी फसलों में उड़द का प्रमुख स्थान है और विश्व स्तर पर उड़द के उत्पादन में भारत अग्रणी देश है। भारत के मैदानी भागों में इसकी खेती मुख्यत: खरीफ सीजन में होती है। परंतु विगत दो दशकों से उड़द की खेती ग्रीष्म ऋतु में भी लोकप्रिय हो रही है। देश में उड़द की खेती महाराष्ट्र, आंधप्रदेश, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडू तथा बिहार में मुख्य रूप से की जाती है।

Climate:
उड़द की खेती के लिए नम और गर्म मौसम आवश्यक है। वृद्धि के समय 25-35 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त होता है। हालांकि यह 43 डिग्री सेंटीग्रेट तक का तापमान आसानी से सहन कर सकती है। 700-900 मिमी वर्षा वाले क्षेत्रों में उड़द को आसानी से उगाया जाता है। अधिक जल भराव वाले स्थानों पर इसकी खेती उचित नहीं है।

Soil Type:
नमक वाली, खारी मिट्टी, जलजमाव वाली मिट्टी भी उड़द की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती। अच्छी वृद्धि के लिए कठोर दोमट या भारी मिट्टी जो पानी को सोख सके, की आवश्यकता होती है।
Soil Treatment:
इसके उपयोग के लिए 8 -10 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद लेते हैं तथा इसमें 2 किलो ट्राईकोडर्मा विरिडी और 2 किलो ब्यूवेरिया बेसियाना को मिला देते हैं एवं मिश्रण में नमी बनाये रखते हैं. यह क्रिया में सीधी धूप नहीं लगनी चाहिए. अतः इसे छाव या पेड़ के नीचे करते हैं. नियमित हल्का पानी देकर नमी बनाये रखना होता है |

Seed Treatment:
बीज बोने से पहले 3 ग्राम थायरम या 2 ग्राम मैकोजेब दवा प्रति किलो बीज के हिसाब से लेना चाहिए। इस दवाई से बीज में लगने वाले रोगों से बचाया जा सकता है और इसके अंकुरण भी अच्छा होता है।
Seed Rate:
खरीफ में बिजाई के लिए 7-8 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें जबकि गर्मियों में बिजाई के लिए 19-20 किलो मोटे बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।

Time of Sowing:
खरीफ की फसल के लिए बिजाई का सही समय जून के आखिरी सप्ताह से जुलाई का पहला सप्ताह है। गर्मियों में खेती करने के लिए इसका सही समय मार्च से अप्रैल महीना है। अर्द्ध पहाड़ी क्षेत्रों के लिए इसकी बिजाई 15 से 25 जुलाई तक की जाती है।
Method of Sowing:
फासला खरीफ की फसल के लिए पंक्तियों में 30 सैं.मी. और पौधों में 10 सैं.मी. का फासला रखें। रबी की फसल के लिए पंक्तियों में 22.5 सैं.मी. और पौधों में 4-5 सैं.मी. का फासला रखें। बीज की गहराई बीज को 4-6 सैं.मी. गहरा बोयें। पहाड़ी इलाकों में बोयी फसल की गुणवत्ता अच्छी होती है। बिजाई का ढंग बिजाई के लिए केरा या पोरा ढंग अपनाएं या इसकी बिजाई, बिजाई वाली मशीन से करें।

Fertilizers :
खादों का प्रयोग मिट्टी की जांच के आधार पर करें| आवश्यकता अनुसार ही खादों का प्रयोग करें और खादों का अनावश्यक प्रयोग ना करें| 13 किलो यूरिया और 50 किलो सिंगल सुपर फासफेट प्रति एकड़ में डालें और अगर मिट्टी में पोटाश की कमी हो तो 10 किलो पोटाश प्रति एकड़ में डालें, साथ ही जिप्सम 50 किलो प्रति एकड़ में डालें| जिप्सम का छींटा दें और खादों को बिजाई के समय ड्रिल कर दें| जिप्सम के साथ फलियों की बनतर में विकास होता है और फलियों में दानों की मात्रा बढ़ जाती है| ज़िंक की कमी होने पर पौधे का ऊपरी हिस्सा छोटा रह जाता है और हल्का पीला दिखाई देता है| ज़िंक की गंभीर कमी होने पर पौधे का विकास रुक जाता है और गुठलियां सिकुड़ जाती हैं| इसकी रोकथाम के लिए ज़िंक सल्फेट हैप्टाहाईड्रेट 25 किलो या ज़िंक सल्फेट मोनोहाईड्रेट 16 किलो प्रति एकड़ में डालें| यह मात्रा 2-3 साल के लिए काफी है|
Water Requirements :
फसल के अच्छे विकास के लिए मौसमी वर्षा के अनुसार 2 या 3 बार पानी लगाएं| पहला पानी फूल निकलने के समय लगाएं। खरीफ की ऋतु में यदि फसल को लंबे समय के लिए प्रभावित हो, तो फलियों के बनने पर सिंचाई करें। फलियों के विकास के लिए मिट्टी की किस्म के अनुसार 2-3 सिंचाइयां करें| मूंगफली की आसानी से पुटाई के लिए कुछ दिन पहले एक बार फिर से पानी लगाएं |
Harvest Time:
पत्तों के गिरने और फलियों का रंग सफेद होने पर कटाई करें। फसल को द्राती से काटें और सूखने के लिए खेत में बिछा दें। गहाई करके दानों को फलियों से अलग करें। उड़द लगभग 85-90 दिनों में पककर तैयार होती है। उड़द की फसल की कटाई के लिए हंसिया का उपयोग किया जाना चाहिए। कटाई का काम 70 से 80 प्रतिशत फलियों के पकने पर ही किया जाना चाहिए। फसल को खलिहान में ले जाने के लिए बंडल बना लें।

Weeds:

Weeds Symptoms:

Weeds Management:
फसल में दो बार कसी से गोड़ाई करें, पहली बिजाई के 3 हफ्ते बाद और दूसरी पहली गोड़ाई के 3 हफ्ते बाद| फलियां बनने के समय गोड़ाई ना करें| नदीनों के अंकुरण से पहले फ्लूक्लोरालिन, 600 मि.ली. या पेंडीमिथालिन 1 लीटर को प्रति एकड़ में डालें और फ़ी बिजाई से 36-40 दिन बाद एक बार हाथों से गोड़ाई करें|
Diseases:
1- टीका और पत्तों के ऊपर धब्बा रोग: 2- बीज गलन या जड़ गलन: 3- झुलस रोग:

Diseases Symptoms:
1- टीका और पत्तों के ऊपर धब्बा रोग: इसके कारण पत्तों के ऊपरी हिस्से पर गोल धब्बे पड़ जाते हैं, और आस पास हल्के पीले रंग के गोल धब्बे होते हैं। 2- बीज गलन या जड़ गलन: यह बीमारी एसपरगिलस नाइजर के कारण होती है। यह फल के निचली जड़ों वाले भाग पर हमला करती है| इससे पौधे सूख कर नष्ट हो जाते है| 3- झुलस रोग: इससे पौधे के पत्तों पर हल्के से गहरे भूरे रंग धब्बे पड़ जाते हैं। बाद में प्रभावित पत्ते अंदर की तरफ मुड़ जाते है और भुरभुरे हो जाते है| ए. आलटरनेटा द्वारा पैदा हुए धब्बे, गोल और पानी वाले होते है, जो पत्ते की पूरी सतह पर फैल जाते है|

Diseases Management:
1- टीका और पत्तों के ऊपर धब्बा रोग: बिजाई से पहले 5 ग्राम थीरम(75%) या 3 ग्राम इंडोफिल एम-45(75%) से प्रति किलो बीज का उपचार करें। फसल के ऊपर घुलनशील सलफर 50 डब्लयू पी 500-750 ग्राम को 200-300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। 2- बीज गलन या जड़ गलन: कार्बेनडाज़िम (बाविस्टिन, डीरोसोल, एग्रोज़िम) 50 डब्लयू पी 500 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। 3- झुलस रोग: अगर इसका हमला दिखाई दें तो मैनकोजेब 3 ग्राम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम और कार्बेन्डाज़िम 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर डालें|
Insects / Pests:
1- चेपा: 2- सफेद सुंडी: 3-बालों वाली सुंडी: 4- दीमक: 5- फली छेदक:

Insects / Pests Symptoms:
1- चेपा: इस कीड़े का हमला कम वर्षा पड़ने पर ज्यादा होता है। यह काले रंग के छोटे कीड़े पौधों का रस चूसते है, जिस कारण पौधों का विकास रुक जाता हैं और पौधा पीला दिखाई देता है| 2- सफेद सुंडी: यह भुंडी आस पास के वृक्ष जैसे कि बेर, रूकमणजानी, अमरूद, अंगूर की बेल और बादाम आदि पर इकट्ठे होते हैं और रात को पत्तों को खाती है। यह मिट्टी में अंडे देती हैं और उनमें से निकली सफेद सुंडी मूंगफली की छोटी जड़ों या जड़ों के बालों को खा जाती हैं। 3- बालों वाली सुंडी:: यह कीट ज्यादा गिनती में हमला करते हैं, जिससे पत्ते झड़ जाते हैं। इसका लार्वा लाल-भूरे रंग का होता है, जिसके शरीर पर काले रंग की धारियां और लाल रंग के बाल होते है| 4- दीमक: यह कीट फसल की जड़ों और तने में जा कर पौधों को नष्ट करता है| यह फलियों और बीजों में सुराख़ करके नुकसान पहुंचाता है। इसके हमले से पौधा सूखना शुरू हो जाता है। 5- फली छेदक: यह छोटे पौधों में सुराख़ बना देते हैं और अपना मल छोड़ते है| इसके छोटे कीट शुरू में सफेद रंग के होते हैं और फिर भूरे रंग की के हो जाते हैं।

Insects / Pests Management:
1- चेपा: डाइमैथोएट 30 ई.सी. 300 मि.ली. या मैलाथियॉन 50 ई.सी. 400 मि.ली. या मिथाइल डेमेटान 25% ई.सी. 200 मि.ली. प्रति एकड़ में डालें| 2- सफेद सुंडी: बिजाई के समय या उससे पहले 4 किलो फोरेट या 13 किलो कार्बोफिउरॉन प्रति एकड़ में डालें| 3- बालों वाली सुंडी: लार्वे की रोकथाम के लिए 300 मि.ली. क्विनलफॉस प्रति एकड़ में डालें| बड़ी सुंडियों की रोकथाम के लिए 200 मि.ली. डाइक्लोरवॉस 100 ई सी को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। 4- दीमक: बिजाई से पहले विशेष खतरे वाले इलाकों में 2 लीटर क्लोरपाइरीफॉस का छिड़काव प्रति एकड़ में करें| 5- फली छेदक: मैलाथियोन 5 डी 10 किलो या कार्बोफियूरॉन 3 % सी जी 13 किलो प्रति एकड़ में मिट्टी में बिजाई से 40 दिन पहले डालें
Nutrients:
N (नाइट्रोजन) P (फॉसफोरस) K (पोटैशियम), बोरोन कैल्शियम

Nutrients Deficiency Symptoms:

Nutrients Deficiency Management: