कंडुआ रोग


Alternate / Local Name:
लेढ़ा रोग, गंडुआ रोग, बाली का पीला रोग/ हल्दी रोग

Short Description:
कंडुआ रोग (False smut) रोग की वजह से फसल उत्पादन पर असर पड़ता है, अनाज का वजन कम हो जाता है और आगे अंकुरण में भी समस्या आती है| इसका रोग जनक एक कवक अस्टीलैगो सेजेटम प्रजाति ट्रिटिसाई बीज के भ्रूण भाग में छिपा रहता है |
AFFECTED CROPS

Name Image Stages Periods Symptoms
गन्ना flowering and fruiting अप्रैल से मई तक यह रोग पाया जाता है बेंत के विकास बिंदु से चाबुक जैसी संरचना (25 - 150 सेमी) का उत्पादन। काले चूर्ण बीजाणुओं के द्रव्यमान को घेरते हुए पारभासी चांदी की झिल्ली से ढका हुआ चाबुक। लम्बी इंटर्नोड्स वाली प्रारंभिक पतली बेंत बाद में लंबाई में कम हो जाती है। विशेष रूप से रतून की फसल में संकरी, सीधी पत्तियों वाली पार्श्व कलियों का प्रचुर मात्रा में अंकुरण।
गेहू Cane formation stage फरबरी से मार्च तक यह रोग पाया जाता है
धान Panicle initiation to booting सितम्बर से अक्तूबर तक यह रोग पाया जाता है

बालियों पर लगने वाली इस बीमारी को आम बोलचाल की भाषा में लेढ़ा रोग, गंडुआ रोग, बाली का पीला रोग/ हल्दी रोग, हरदिया रोग से किसान जानते है। वैसे अंग्रेजी में इस रोग को फाल्स स्मट और हिन्दी में मिथ्या कंडुआ रोग के नाम से जाना जाता है। कंडुआ रोग (False smut) रोग की वजह से फसल उत्पादन पर असर पड़ता है, अनाज का वजन कम हो जाता है और आगे अंकुरण में भी समस्या आती है। ये रोग जहां उच्च आर्द्रता और 25-35 सेंटीग्रेड तापमान होता है वहां पर ज्यादा फैलता है, ये हवा के साथ एक खेत से दूसरे खेत उड़कर जाता है और फसल को संक्रमित कर देता है।

पौधों की बालियों में दानों की जगह रोग जनक के रोगकंड (स्पोर्स) काले पाउडर के रूप में पाये जाते हैं जो कि हवा से उड़कर अन्य स्वस्थ बालियों में बन रहे बीजों को भी संक्रमित कर देते हैं | इस प्रकार रोग आगे आने वाली फसल में पहुंच जाता है

इस रोग कि रोकथाम के लिए रोग्र्स्त पौधों को उखाड़कर जला दें | बीजों को कार्बोक्सिन 75 डब्लू.पी. 1.5 ग्राम या कर्बेन्डाजिम 50 डब्लू.पी. 1.0 ग्राम या टेब्यूकोनाजोल 2.0 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार कर बुवाई करें