पीला रतुआ


Alternate / Local Name:
पीला रतुआ , येलो रस्ट ,धारीदार जंग , स्ट्राइप रस्ट

Short Description:
पीला रतुआ रोग गेहूं के सबसे खतरनाक और विनाशकारक रोगों में से एक है। इसे धारीदार रतुआ भी कहते हैं जो पक्सीनिया स्ट्राईफारमिस नामक कवक से होता है। पीला रतुआ फसल की उपज में शत प्रतिशत नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखता है। इस बीमारी से उत्तर भारत में गेहूं की फसल का उत्पादन और गुणवत्ता दोनों ही प्रभावित होती है।
AFFECTED CROPS

Name Image Stages Periods Symptoms
गेहू Vegetative stages जनबरी से फरवरी तक यह रोग पाया जाता है पीला रतुआ रोग को कई क्षेत्रों में येलो रस्ट या धारीदार रतुआ रोग के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर पीले रंग की धारियां उभरने लगती हैं। कुछ समय बाद पूरी पत्तियां पीले रंग की हो जाती हैं। मिट्टी में भी पीले रंग के पाउडर के समान तत्व गिरने लगते हैं। कल्ले निकलने के समय पीला रतुआ रोग होने पर पौधों में बालियां नहीं बनती हैं।
जौ Vegetative stages जनबरी से फरवरी तक यह रोग पाया जाता है पीला रतुआ रोग को कई क्षेत्रों में येलो रस्ट या धारीदार रतुआ रोग के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर पीले रंग की धारियां उभरने लगती हैं। कुछ समय बाद पूरी पत्तियां पीले रंग की हो जाती हैं। मिट्टी में भी पीले रंग के पाउडर के समान तत्व गिरने लगते हैं। कल्ले निकलने के समय पीला रतुआ रोग होने पर पौधों में बालियां नहीं बनती हैं।

इस बीमारी के लक्षण ज्यादातर नमी वाले क्षेत्रों में ज्यादा देखने को मिलते हैं और साथ ही पोपलर व यूकेलिप्टस के आस-पास उगाई गई फसल में ये रोग पहले आती है। पीला रतुआ रोग को कई क्षेत्रों में येलो रस्ट या धारीदार रतुआ रोग के नाम से भी जाना जाता है।

पीला रतुआ रोग को कई क्षेत्रों में येलो रस्ट या धारीदार रतुआ रोग के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर पीले रंग की धारियां उभरने लगती हैं। कुछ समय बाद पूरी पत्तियां पीले रंग की हो जाती हैं। मिट्टी में भी पीले रंग के पाउडर के समान तत्व गिरने लगते हैं। कल्ले निकलने के समय पीला रतुआ रोग होने पर पौधों में बालियां नहीं बनती हैं।

रोग के लक्षण दिखाई देते ही प्रोपीकोनाजोल 25 ई.सी. (टिल्ट) या टेब्यूकोनाजोल 25 ई.सी. का 0.1 प्रतिशत घोल बनाकर छिड़काव करें. रोग के प्रकोप तथा फैलाव को देखते हुए दूसरा छिड़काव 10-15 दिन के अंतर पर करें | अधिक संक्रमण होने पर टेब्यूकोनाजोल 50% + ट्राईफ्लाक्सीस्तार्बिन 25% डब्ल्यू जी 100 मिली० प्रति एकड़ स्प्रे करें |