लाल मकड़ी छोटे-छोटे कीट हैं जो पत्तियों की निचली सतह में कॉलोनी बना कर रहती हैं। यह पत्तियों से रस चूसती है। इससे पौधों में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। इससे पत्तियों और कलियों में प्रकाश संश्लेषण कम हो जाता है। इसके कारण पत्तियां मुरझा जाती हैं और पौधों का विकास रुक जाता है। इसके प्रकोप से फल कम पकते हैं या कच्चे ही गिर जाते हैं।
रेड माइटों के खाने से पत्तियों की ऊपरी सतह पर सफ़ेद से पीले रंग के धब्बे हो जाते हैं। जैसे-जैसे संक्रमण और अधिक गंभीर होता जाता है, पहले पत्तियाँ कांसे या चांदी के रंग की दिखने लगती हैं और बाद में टूटने जैसी स्थिति में आ जाती हैं, पत्तियाँ शिराओं के बीच से फट जाती हैं, और अंततया गिर जाती हैं।
इसके अलावा डायमिथोएट 30 ई.सी. या मिथाइल डिमेटान 25 ई.सी. की 1 मिलीलीटर मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर 15 दिनों के अंतर पर 2 बार छिड़कें। स्पाइरोमेसिफेन 22.90% ई.सी की 200 मिलीलीटर दवा को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। फूल आने के तुरन्त बाद कार्बेरिल 50 डब्ल्यू पी 2 ग्राम प्रति लीटर या मोनोक्रोटोफोस 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का छिडकाव करें। 5 मिलीलीटर नीम के तेल को प्रति लीटर पानी के साथ छिडकाव करें, छिड़काव के समय घोल में टीपोल मिलाएं जिससे यह असरदार रहे। फेनाजेक्विन 10 % ई.सी. की 500 मिलीलीटर मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें |